9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने दिया था अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा
अमित अग्रवाल, हापुड़।
अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा। साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल। कलम, आज उनकी जय बोल। रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता उन शहीदों की याद दिलाती है, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपना बलिदान दे दिया। देश में जब भी आजादी की बात होती है तो उसमें हापुड़ का भी जिक्र होता है।
देश की आजादी के अग्निकुंड में हापुड़ वासियों ने भी अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। गांधी जी के आवाहन पर 9 अगस्त 1942 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की घोषणा के बाद देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए थे। 10 अगस्त को गांधी जी के आह्वान पर हापुड़ के स्वतंत्रता सेनानियों ने नगर पालिका में तिरंगा फहराने का निर्णय लिया था। इस दौरान शहर के चारों कोनों से लोगों ने जुलूस निकाला और अतरपुर चौपला पर इकट्ठे हो गए। जुलूस का नेतृत्व कैलाश चंद, महेश, लाला बखतावर लाल, मुकुट लाल संपादक और अमोलक चंद कर रहे थे। 11 अगस्त की सुबह अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भर रहे सैकड़ों लोगों को देख तत्कालीन कोतवाल ने जनरल डायर की तर्ज पर निहत्थे लोगों को घेरकर उन पर लाठीचार्ज और उनपर गोलियां बरसा दी थीं। इस दौरान 4 वीर शहीद हो गए थे। उन्हीं की याद में हर साल 11 अगस्त को शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि दी जाती है।
आज भी याद दिलाता है वो पेड़…
अंग्रेजों को भगाने के लिए गांधी जी के साथ हापुड़ के लोगों ने जमकर लोहा लिया था। इस दौरान हापुड़ तहसील के 26 गांवों के गुर्जरों और अन्य लोगों को बड़ी ही निर्दयता से पैरों में कील गाढ़कर जिंदा जला दिया गया था। वहीं, कई सेनानियों को पेड़ों से बांधकर गोली से उड़ा दिया गया और कुछ लोगों को फांसी भी दी गई थी। वो पेड़ आज भी शहीदों की शहादत की याद दिलाते हैं। इसके बाद ही भारत में अंग्रेजों के बढ़ते जुल्म को देखकर गांधी जी ने 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देते हुए धरना शुरू किया था।
तीन गोली लगने के बाद भी गिरने नहीं दिया तिरंगा…
जनरल डायर की तत्कालीन कोतवाल द्वारा करवाई फायरिंग में गिरधारी लाल, राम स्वरूप, अंगनलाल और मांगे लाल गोली लगने से शहीद हो गए, लेकिन सेवकराम ने 3 गोली लगने के बाद भी तिरंगा नहीं गिरने दिया और अंग्रेजों से लड़ते हुए उन्होंने नगर पालिका में पहुंचकर तिरंगा लहरा दिया था। वहीं, 12 अगस्त 1942 को सफाई के दौरान अतरपुरा चौपले पर 12 वर्षीय एक बच्ची का गोली लगा शव मिला था, जिसका आज तक कुछ पता नहीं चल सका। कोतवाल के इस कांड को मिनी जलियांवाला बाग का नाम भी दिया जाने लगा था।
आजादी के बाद 1947 से कुछ गणमान्य लोगों ने यहां पर शहीदों की शहीद स्मारक बना दी और तब से आज तक प्रतिवर्ष 11 अगस्त को शहर के लोग शहीदों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
शहीद स्मारक पर बनी पुलिस चौकी
वहीं, दूसरी ओर शहीद स्मारक पर कई दशकों से रेलवे रोड पुलिस चौकी बनाकर पुलिसवालों ने अपना कब्जा कर रखा है। हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद भी आजतक जगह खाली नहीं हो सकी है। 1942 में बनी शहीद स्मारक समिति के सदस्य सुरेश चंद संपादक ने बताया कि समिति की बैठक में तय किया गया है कि उक्त जगह पर पुलिस चौकी, शहीद स्तंभ, संग्राहलय और पीड़ित दुकानदारों को दुकानें नए सिरे से बनाकर दी जाएंगी।