एड्स का नाम लेते ही दिमाग मे मृत्यु के समान भयावह तस्वीर चलचित्र सदृश चलने लगती है । जिससे ग्रसित व्यक्ति के पास मृत्यु का वरण करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। समाज भी उसे अपराधी समझते हुए उपेक्षित कर देता है, फलतः रोगी कुंठित होकर तिल तिल जीते हुए असमय काल कवलित हो जाता है। एड्स ( AIDS ) अर्थात एक्वायर्ड एम्यून डिफीसिएनसी सिंड्रोम का अभिप्राय ऐसी बीमारी का समूह जो वायरस के संक्रमण से उत्पन्न होती है और इसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है। यानी एड्स किसी एक रोग का नाम नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के संक्रमण का समूह है । जो संक्रमित व्यक्ति के शरीर के प्रतिरक्षण तंत्र को पूरी तरह से कमजोर करके ही प्रकट होता है। रोगी की प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम हो जाती है कि वह साधारण सी बीमारी का सामना नहीं कर पाता क्योंकि बाह्य जीवाणुओं के आक्रमण से अपनी रक्षा करने में असमर्थ व अशक्त हो जाता है और थोड़ा सा भी शारीरिक श्रम यहां तक कि सर्दी जुकाम का सामना करने में भी असमर्थ हो जाता है।
एड्स का वायरस बहुत कमजोर रिट्रो ग्रुप का होता है। इसे एच. आई. वी. एड्स के नाम से भी जाना जाता है। इसका विकास मनुष्य के शरीर के अंदर ही हो सकता है। शरीर के बाहर शुष्क वातावरण में यह नष्ट हो जाता है । डिटर्जेंट या रोगाणुनाशक कैमिकल में भी अधिक दिन नही जीवित नहीं रह पाता।
आधुनिक शोध से जानकारी मिलती है कि एच. आई. वी. वायरस मनुष्य के रक्त में जीवित रह पाता है।यह लार तथा आंसू में भी पाया जाता है। रक्त शरीर का महत्वपूर्ण द्रव होता है जो शरीर के अंगों को जोड़ने के साथ वाहक का कार्य भी करता है।
व्यक्ति आसानी से विभिन्न रोगों से ग्रसित हो जाता है। शरीर में प्रवेश करने के बाद यह वायरस तुरंत अपना प्रभाव नहीं दिखाता । अतः रोगी अपने आप को स्वस्थ महसूस करता है। वायरस वर्षों तक शांत रहकर अपनी संख्या में वृद्धि करता है। पर्याप्त संख्या हो जाने पर रोग के लक्षण व प्रभाव दिखाई पड़ने लगते हैं। लगातार बुखार व खांसी रहना, दस्त, तीव्रता से वजन घटना, आलस, भूख न लगना, रात्रि में पसीना आना, शरीर में दाने पड़ना, गर्दन, काँख व जांघो की ग्रंथियों में सूजन एड्स के सामान्य लक्षण हैं। मष्तिष्क में प्रवेश करके यह वायरस मानसिक क्रियाओं को बाधित कर देता है और व्यक्ति मानसिक रोगों से भी पीड़ित हो जाता है। स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है तथा निर्णय लेने में व्यक्तिअक्षम हो हटा है । स्नायु तंत्र व शारीरिक क्रियाओं पर से नियंत्रण समाप्त हो जाने से आंशिक रूप से लकवा का प्रभाव भी इस रोग में देखा गया है।
एड्स अपने चरम रूप में एक विशेष प्रकार के त्वचा कैंसर से व्यक्ति को पीड़ित करता है ,यह कैंसर संपूर्ण शरीर की त्वचा पर फैलकर व्यक्ति को मृत्यु की ओर अग्रसर करता है । कुछ रोगियों में लिम्फोमा कैंसर भी देखा गया है । विषाणुओं की अधिकता थाइमस ग्रंथि ,अस्थिमज्जा,वीर्य,योनि स्राव, आंत, संग्रहणी, मलाशय,थूक,पसीने में व्याप्त होकर दूसरे व्यक्ति में प्रसारित हो जाते हैं।
अधिकतर लोगों में असुरक्षित यौन संपर्क से यह रोग प्रसारित होता है। यौन साथी के एच. आई. वी. संक्रमित होने पर समलैंगिक तथा विपरीत लैंगिक दोनों को संक्रमित करता है । एच. आई. वी. संक्रमित रक्त स्वस्थ व्यक्ति को देने से यह उसे भी संक्रमित कर देता है।एड्स ग्रस्त माता से उसकी अजन्मी संतान में भी यह रोग हस्तांतरित हो जाता है । संक्रमित सुई,ब्लेड,उस्तरा,चाकू से भी इस वायरस का प्रसार सुगमता से हो जाता है।