हापुड़। स्कूलों में नए शिक्षा सत्र का प्रारंभ हो चुका है। अभिभावकों का शोषण न हो, इसके लिए मिल रही शिकायतों के आधार पर डीआईओएस ने स्कूल संचालकों को मनमानी न करने के आदेश दिए थे और शिकायत पर कार्यवाही के लिए कहा था। लेकिन अभी भी अभिभावक निजी स्कूल संचालकों की मनमानी से पिस रहे हैं। चुनिंदा दुकानों पर मिल रही स्कूलों की किताबों के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। ऐसी दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी है और घंटों में अपनी बारी का इंतजार भी करना पड़ रहा है।
नए सत्र में अधिकांश स्कूलों ने पिछले साल की किताबों को बदलकर नए प्रकाशक की किताबों को लगाया है। ज्यादातर समस्या निजी प्रकाशकों की किताबों को लेकर आ रही है। अधिकतर स्कूलों ने प्राथमिक कक्षाओं में निजी प्रकाशकों की पुस्तक चला रहे हैं, जिसकी सूची अभिभावकों को रिजल्ट के साथ ही दे दी गई थी। अब परेशानी ये है कि स्कूल खुलने के बाद भी बिना किताबों के बच्चों को स्कूल कैसे भेजा जाए।
सीबीएसई स्कूलों में न तो गाइडलाइन का पालन हो रहा है और न ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश माने जा रहे हैं। इन स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों के बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें चलाई जा रही हैं जो पांच गुना तक अधिक महंगी होती हैं। जिससे अभिभावकों को महंगी किताबों का सेट खरीदना पड़ रहा है। किताबों के दाम बीते वर्ष के मुकाबले 10 से 15 प्रतिशत बढ़े हैं। निजी स्कूलों में कक्षा 8 तक की किताबों को खरीदने के लिए अभिभावकों को 6 हजार से लेकर 8 हजार रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं।
राजकुमार का कहना है कि स्कूलों की किताबों की कीमत कक्षावार बढ़ती जाती है। कॉपियों के मामले में स्टेशनरी संचालकों ने स्कूलों के नाम वाली कॉपियां बिक्री के लिए रखी हैं। इनके दाम लागत से अधिक वसूले जा रहे हैं।
शर्मिला का कहना है कि निजी स्कूलों की मनमानी के चलते बच्चों की पढ़ाई महंगी होती जा रही है और लोगों की जेब ढीली हो रही है। सरकार को कोई ठोस नियम लागू कर स्कूलों की मनमानी पर रोक लगानी चाहिए।