कांग्रेस की सभाओं में भाषणों से लेकर गांधी की हत्या तक, नाथूराम गोडसे ने खुद को हिंदुओं का रक्षक क्यों माना?
नई दिल्ली, नाथूराम गोडसे की जयंती गांधी के हत्यारे, यह सुनते ही हमारे दिमाग में नाथूराम गोडसे का नाम आ जाता है। गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्हें हिंदुओं की बर्बादी का कारण बताया था।
आखिर गोडसे के मन में गांधीजी के खिलाफ इतनी आग क्यों धधक रही थी, उसने उन्हें मार कर भी खुद पर गर्व करने की बात क्यों की? गोडसे के जन्मदिन पर आज हम इन्हीं सवालों के जवाब देंगे और बताएंगे उनके बचपन से लेकर गांधी के हत्यारे बनने तक की कहानी.
गोडसे की व्यक्तिगत जानकारी
- 19 मई, यानी आज ही के दिन नाथूराम गोडसे का जन्म हुआ था। गोडसे का जन्म वर्ष 1910 में पुणे के बारामती में हुआ था। नाथूराम एक ब्राह्मण परिवार में पिता विनायक वामनराव गोडसे और माता लक्ष्मी के घर हुआ था। गोडसे के जन्म से बचपन तक की कहानी भी काफी अलग रही।
- गोडसे अपने परिवार का चौथा बेटा था और उसका परिवार खुद को श्रापित मानता था। उसके परिवार का कहना था कि उनके घर जन्मी लड़कियां तो बच जाती थीं, लेकिन लड़के श्राप के कारण मर जाते
- थे।
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लड़कियों की तरह बीता बचपन
गोडसे के परिवार में बेटों की अकाल मृत्यु होने के कारण उसे लड़कियों की तरह पाला गया था। उससे पहले पैदा हुए तीन लड़कों की बचपन में मौत हो गई थी। इसके चलते घर वालों ने नाथूराम को नाक छिदवाकर, फ्रॉक पहनाकर 12 साल की उम्र तक ऐसे ही रखा।
इसलिए रामचंद्र से नाथूराम पड़ा नाम
नाथूराम गोडसे का नाम रामचंद्र था, लेकिन लड़कियों की तरह भेष रखने और नाक छिदवा कर रखने के कारण उसके दोस्तों और परिजनों ने उसका नाम नाथूराम रखा। नाथूराम के बाद उसके भाई दत्तात्रेय का जन्म हुआ और इसी कारण उसका परिवार मानने लगा कि उसने ही सभी को श्राप से मुक्त करवाया है
कांग्रेस की सभाओं में देता था भाषण
दरअसल, महात्मा गांधी देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर छात्रों, महिलाओं और आम लोगों के बीच जाकर भाषण देते थे और उन्हें खादी को अपनाने और कांग्रेस में शामिल होने की बात कहते थे। गांधी जी की इस यात्रा के कारण लोग कांग्रेस से जुड़ने लगे और देश में स्वाधीतना का माहौल पैदा होने लगा।
इसी दौरान नाथूराम के पिता जो डाक विभाग में थे, उनकी पोस्टिंग रत्नागिरी हो गई। रत्नागिरी में गोडसे कांग्रेस के नेताओं से मिलकर सभाओं में जाने लगा। सभाओं में गोडसे भाषण भी देने लगा।
वीर सावरकर से मुलाकात ने बदले विचार
गोडसे की रत्नागिरी में इसके बाद विनायक दामोदर सावकर से मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद से उसकी विचारधारा में परिवर्तन आना शुरू हुआ और वह हिंदुत्व की राह पर चलने लगा। दरअसल, सावरकर अंडमान की सेल्यूलर जेल में काले पानी की सजा काट कर लौटे थे और वे अपने हिंदुत्व के सिद्धांत के अनुसार भाषण देते थे। इसी भाषणों से गोडसे प्रभावित था और उसने कांग्रेस की सभाओं से दूरी बनानी शुरू कर दी।
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RSS से जुड़ाव
सावरकर के प्रभावित होने के चलते ही गोडसे आरएसएस से जुड़ा था। सावरकर जब 1937 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने तो गोडसे भी इससे जुड़ गया। गोडसे के आरएसएस नेताओं से भी जान पहचान होने लगी थी, लेकिन 1942 में विश्व युद्ध की आहट के बीच आरएसएस पर कई तरह की पाबंदी लगी थी और वे कोई परेड आदि नहीं कर सकते थे।
इसके चलते गोडसे ने अपना ही एक नया संगठन हिंदू राष्ट्र दल बना लिया, जिसे आरएसएस और हिंदू महासभा दोनों का समर्थन मिला था। इस संगठन में ही उसकी मुलाकात नारायण दत्तात्रेय आप्टे से हुई, जो गांधीजी की हत्या में शामिल था।
बटवारे के चलते महात्मा गांधी से हुई नफरत
महात्मा गांधी की हत्या के पीछे गोडसे का देश के बटवारे के खिलाफ होना माना जाता है। गोडसे नहीं चाहते थे कि देश को धर्म के आधार पर बांटा जाए। इन्हीं सब को देखकर उसने गांधी जी की हत्या की प्लानिंग रची। इसके बाद गोडसे ने दत्तात्रेय आप्टे, मदन लाल पहवा और विष्णु करकरे के साथ मिलकर गांधी को मारने की सोची। इसके बाद 20 जनवरी 1948 को पहवा ने प्लान के अनुसार प्रार्थना सभा में विस्फोट किया, लेकिन उसे एक महिला ने देख लिया और वो गिरफ्तार हो गया।
साथी की गिरफ्तारी के बाद भी गोडसे को कोई डर नहीं लगा और नफरत की आग बुझाने के लिए 29 जनवरी को दिल्ली के बिड़ला भवन में गोडसे ने गांधी जी के सीने में तीन गोलियां दाग दीं। गोडसे को इसके बाद पकड़ लिया गया और उसने गांधी जी की हत्या के लिए खुद पर गर्व होने की बात कही, जिसके बाद कोर्ट के आदेशानुसार उसे 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई।
यह बयान गांधी की हत्या के बाद दिया गया था
महात्मा गांधी की हत्या के बाद गोडसे ने अदालत से कहा कि उन्हें खुद पर गर्व है। उन्होंने कहा था कि मुसलमानों को खुश करने के लिए गांधी ने हिंदी भाषा और हिंदुस्तान को दो भागों में बांट दिया। उनका मानना था कि गांधी जी ने सारे प्रयोग हिंदुओं की कीमत पर किए थे।गोडसे ने अपने बयान में कहा था कि महात्मा गांधी की वजह से मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे हैं और कांग्रेस तुष्टिकरण की नीति अपना रही है. उन्होंने कहा कि मैं विभाजन से नाराज था, जो हिंदुओं के लिए केवल बर्बादी और तबाही लेकर आया, इसलिए मैंने गांधी को मार डाला।
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