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हिन्दी साहित्य भारती के काव्य संकलन – काव्य भारती का हुआ भव्य विमोचन

हिन्दी साहित्य भारती के काव्य संकलन – काव्य भारती का हुआ भव्य विमोचन

विश्व के 35 देशों में हिन्दी के गौरव को बढाने वाली हिन्दी साहित्य भारती साहित्यिक संस्था जनपद हापुड़ ने अपने प्रथम वार्षिकोत्सव को धूम धाम से मनाते हुए 41 कवियों की कविताओं का संकलन काव्य भारती के प्रथम अंक का विमोचन पिलखुवा के दर्शना दा स्कूल में एक विशाल कवि सम्मेलन के साथ विमोचन किया गया। कवि सम्मेलन में दूर दराज़ से आए लगभग चालीस कवियों ने अपने गीत, गजल और कविताओं से भिन्न भिन्न विषयों पर अपनी शानदार प्रस्तुति दी।कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दी साहित्य भारती उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. वागीश दिनकर जी ने की । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात कवि एवं पत्रकार श्री रवि अरोड़ा जी विशिष्ट अतिथि नगर पालिका परिषद पिलखुवा के चेयरमैन श्री विभु बंसल जी, प्रदेश महामंत्री हिन्दी साहित्य भारती उत्तर प्रदेश अक्षय प्रताप अक्षय और मेरठ प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष बाबा कानपुरी रहे।कार्यक्रम का सफल संचालन जिलाध्यक्ष दिनेश त्यागी व डा.सतीश वर्धन जी ने किया।कवियत्री बीना गोयल न सरस्वती वंदना पढ़ी।सम्मानित मंच द्वारा काव्य भारती के प्रथम अंक का विमोचन किया गया।

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कवियों की श्रंखला में वरिष्ठ कवि प्रो. वागीश दिनकर जी ने कुछ यूँ पढा कि….मधुसूदन भगवान कृष्ण की वृहत योजना का प्रतिफल।
भारत का यह महायुद्ध था वही योजना हुई सफल।।
कवि राज चैतन्य जी ने पढा…..
नज़र कुछ भी नहीं आता, जिधर देखूँ अंधेरा है!
ना जाने रात कब आयी, ना जाने कब सबेरा है!!
विशिष्ट अतिथि प्रदेश महामंत्री कवि अक्षय प्रताप अक्षय ने पढ़ामां की रक्त शिराओं में जब चित्र देश का बसता है।जीजाबाई के आंगन में वीर शिवा तब हंसता है।
विशिष्ट अतिथि मेरठ प्रांत के अध्यक्ष कवि बाबा कानपुरी ने पढ़ा_देता जग को धूप रवि। धवल चांदनी चंद।हम गुलाब के फूल हैं,देते हैं मकरंद।।
जिलाध्यक्ष कवि दिनेश त्यागी ने पढ़ा
हिन्दी का डंका बजे,चहुंदिस फैले हर्ष।ऐसा पर्व मनाइए,हो जग में उत्कर्ष।।
संस्था के महामंत्री कवि मोहित शौर्य ने पढ़ा__गम की रातों में भी आंसू छुपाकर रोता है।कितना मुश्किल है जमाने में एक पिता होना।
डॉ. सतीश वर्द्धन जी ने पढा कि…..
खेल रहें हैं होलियाँ, कया नेता कया संत!
कवि अशोक गोयल ने पढ़ा_गीतों में अपने गीत मिलाते हुए चलो।
सोए हुए हैं लोग जगाते हुए चलो।
कवि सतीश वर्धन ने पढ़ा_खेल रहे हैं होलियां,क्या नेता क्या संत।
कैद जिनमें घर रहे, पूरे वर्ष बसंत!!
वरिष्ठ कवि राम आसरे गोयल ने पढ़ा_मैं नहीं जानता छंद बंद ,मन की पीड़ा को गाता हूं जो भाव उमड़कर आते उनको बस लिखता जाता हूं।
वरिष्ठ कवि देवेंद्र प्रताप सिंह ने पढ़ा_हे गिरधर रक्षा करो अ ह ह!गिरिवर को धारण करो पुनः।
बेखौफ शायर डा. नरेश सागर ने पढा कि….
लेकर वो चादर ,गया है मजार पर!
माँ रो रही है बैठी, टूटी दीवार पर!!
कवि विजय वत्स ने देश की माटी की महिमा करते हुए पढा…
मेरे देश की माटी, चंदन सम!
जितने गुण गाएं, उतने कम!!
वरिष्ठ कवि रामबीर आकाश ने पढ़ा_मैंने दरिया की रवानी पर यूं आशक लिख दी।उड़ते पंछी के परों पर भी इबादत लिख दी।
राजकुमार हिन्दुस्तानी ने कहा…
सच्चाई का सामना, करती कलम विशेष!
प्रेम भाव लिखती सदा, लिखती कभी ना द्वेष!!
कवि अवनीत समर्थ ने पढ़ा_सुलगती रेत में चप्पल सरों तक धूल जाती थी।बड़ी छोटी सी पगडंडी मेरे स्कूल जाती थी।
युवा कवि विकास विजय सिंह त्यागी ने सैनिकों को याद करते हुए पढा…
मिट जाएगें वो वहीँ, ये वो सैनिक जानता है!
फिर भी वो सरहद को, भगवान् मानता है!
कवि पुष्पेंद्र पंकज ने पढ़ा_ नव आशा नव जोश का श्रृंगार कर व्याप्त डर अंधकार का संहार कर।
कवि ओमपाल सिंह विकट ने पढ़ा _काव्य भारती रच डालूं यह दिनकर के मन आया था।मनोकामना हो पूरी वागीश समूह बनाया था।। इसी श्रृंखला में शिव प्रकाश शर्मा, गंगाशरण शर्मा, दिव्यांश दिव्य,हिमानी आदर्श,महेश वर्मा, नगेन्द्र प्रताप, मनीषा गुप्ता,कपिल वीर सिंह, राजकुमार शिशौदिया, योगी मोनू राणा, धर्मेन्द्र शर्मा, सौरभ राणा ,लोकेश शर्मा विचित्र,रवि अकेला,शुभम शुक्ल उग्र आदि ने भी काव्यपाठ किया।

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