नदी पुनर्जीवन से परिस्थितिकीय तंत्र की पुनर्स्थापना पर किया विचार मंथन


हापुड़(अमित मुन्ना)।
लोक भारती के प्रांत संयोजक पर्यावरणविद भारत भूषण गर्ग ने गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा कि आज यह स्थिति क्यों उत्पन्न हो गई कि हमें पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की आवश्यकता महसूस होने लगी हम उस देश के वासी हैं जहां प्रकृति को देवता माना गया है जहां हम पेड़ों की पूजा करते हैं वही नदियों को देवी स्वरूपा मां मानकर उनकी भी पूजा करते हैं इन सब पर आज गंभीर संकट आन खड़ा हुआ है इस विषय में हम सभी पर्यावरण विदों को गंभीर विमर्श करना चाहिए।
सेंटर फॉर वॉटर पीस के द्वारा ‘अहं ब्रह्मास्मि संस्था के सहयोग से ‘नदी पुनर्जीवन से परिस्थितिकीय तंत्र की पुनर्स्थापना’ विषय पर एक आभासी पटल पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से कई विख्यात नदी विशेषज्ञ, नदी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

~ कार्यक्रम की अध्यक्षता सेंटर फॉर वॉटर पीस के अध्यक्ष श्री संजय कश्यप ने की तथा उन्होंने सेमिनार की विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘नमामि हरनंदे मिशन’ के अंतर्गत गंगा दशहरा स्नान पर यह कार्यक्रम पिछले 6 सालों से आयोजित किया जाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह दशक ‘परिस्थितिकीय तंत्र की पुनर्स्थापना ‘ को समर्पित किया है। नदी पुनर्जीवन से इसको कैसे प्राप्त किया जा सकता है तथा उसके आयामों पर सेमिनार मील का पत्थर साबित होगा।

~ सहारनपुर स्थित पांवधोई नदी पुनर्जीवन समिति के डा. प्रमोद शर्मा जी ने बताया की उत्तर प्रदेश में पहली यह नदी है जो पुनर्जीवित हुई है। इसको आदर्श मानकर ही शेष नदियों पर काम चल रहा है। राज व समाज मिलकर आज भी लगातार काम कर रहे हैं।

~ मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध नदी विज्ञानी श्री कृष्ण गोपाल व्यास जी ने अनुभव कथन किया कि नदियों के कछार में काम होना आवश्यक है। नदियों के कछार, मैदान में जल – बजट बनाना पड़ेगा। कैचमेंट क्षेत्र का तकनीकी आधार पर सुधार करना होगा।

~ महाराष्ट्र में विदर्भ के वाशिम जिले की मादान नदी पर कार्यकर्ता श्री सचिन कुलकर्णी ने कहा की वह वनवासी क्षेत्र में काम करते हैं, वनवासी नदी व पानी को गंदा नहीं करते उनका सम्मान करते हैं। नदी की गहराई बढ़ाते समय नदी की प्रकृति ध्यान में रखनी चाहिए।

~ पूना जिले की मूला – मूठा नदी कार्यकर्ता संजय कालभोर जी ने कहा की नदी एक वर्ष में पूरा जीवन जीती है जैसे सूखा और वर्षा। हमे इसी के अनुसार नदी के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

~ उत्तर प्रदेश अमरोहा के नमामि गंगे जिला संयोजक श्री संजय गौर जी ने सोत व वाण नदियों पर अपना काम बताया कि प्रशासन व जनता ने मिलकर नदी जीवित की है जिससे वहां भूजल स्तर सुधरा है। कृषि में गुणवंता सुधार आया है।

~ राजस्थान अलवर की ‘ अरबरी नदी’ पर तरुण भारत संघ के श्री सुरेश रैकवार ने बताया कि जलपुरुष राजेंद्र सिंह के साथ मिलकर नदियों को तालाब से जीवित किया। इससे राजस्थान की पारिस्तिथकी व जनमानस दोनों को बहुत लाभ मिला।

~ उतराखंड अल्मोड़ा जिले की कोलज नदी के जलागम क्षेत्र में काम करने वाले श्री आर० सी० विरमानी जी ने पहाड़ों पर चाल व खाल बनाकर नदी को पानीदार बनाया तथा उनके अनुसार पहाड़ पर इससे आग भी नहीं लगती क्योंकि हरियाली व आद्रता वर्ष भर रहती है।

~ उत्तर प्रदेश हापुड़ की ‘ नीम नदी ‘ पर कार्यरत पर्यावरणविद लोक भारती के प्रांत संयोजक भारत भूषण गर्ग ने कहा की नदी के गांवों में बेटियां पौधारोपण नदी किनारे करती है तथा शादी होने पर उनके माता पिता बेटी की तरह पौधों की देखभाल करते हैं। उन्होंने बताया की नदी क्षेत्र में एक झील के पुनर्जीवन पर भी काम चल रहा है। इस झील पर सभी मिलकर काम करेंगे यह प्रस्ताव भी सेमिनार में पारित हुआ।

~ हिंडन नदी पर काम कर रहे जल वैज्ञानिक डा. उमर सैफ ने कहा कि सहारनपुर व गाजियाबाद नगर निगम नदी व उसके परिस्तिथिकी तंत्र पर बेहतरीन काम कर रहे हैं। नदी माइक्रो वॉटर शेड से मिलकर बनी होती है। उनका केंद्रबिंदु इसी पर रहता है।

~ सेमिनार का समापन ‘ राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहसंपादक व प्रख्यात पर्यावरण पत्रकार श्री पंकज चतुर्वेदी जी ने यह कहकर किया की हमें अपनी आवश्यकताएं व जीवन शैली नदी व प्रकृति के अनुरूप ही रहनी होगी। रेत के लिए नदियों की मारना ठीक नहीं। नदियों को माता कहना फिर उनकी हत्या करना कैसे उचित है?

अंत में सेमिनार के आयोजन मे सहयोगी संस्था ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के अध्यक्ष लोकेश शर्मा ने सभी वक्ताओं तथा श्रोताओं का आभार जताया।

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