हापुड़ (अमित अग्रवाल मुन्ना)।
गढ़ – अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से सांसद कुँवर दानिश अली ने कहा कि
उत्तर प्रदेश लगातार दूसरे साल देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य रहा है जिस में इस राज्य के करीब 40 लाख से अधिक गन्ना किसान का योगदान है। उत्तर प्रदेश सरकार के तमाम दावों के विपरीत पिछले पेराई सत्र (2019-20) जो अप्रैल-मई 2020 में समाप्त हो गया था उसका भुगतान राज्य की चीनी मिलों से लाखों किसानों को जनवरी-फरवरी, 2021 तक हो पाया। चालू पेराई सीजन (2020 -21) जो लगभग समाप्त हो गया है उसका 12 मई, 2021 तक चीनी मिलों पर 11 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का बक़ाया है।
राज्य सरकार के खुद के दस्तावेज़ों के अनुसार 12 मई तक राज्य की चीनी मिलों के लिए कुल गन्ना भुगतान 32,348.66 करोड़ रुपये था। गन्ने की आपूर्ति के 14 दिन बाद की वैधानिक बक़ाया की गणना में भी यह आंकड़ा 31,487.75 करोड़ रुपये था। इस में से 19,615.05 करोड़ रुपये का ही भुगतान उक्त चीनी मिलों ने 12 मई तक किया है। इस के बाद भी 11,872.70 करोड़ रुपये का बक़ाया चीनी मिलों पर है। राज्य सरकार के अनुसार 12 मई तक कुल बक़ाया का 62.29 प्रतिशत भुगतान ही हुआ है।
जबकि 37.71 प्रतिशत अभी बाक़ी है।
सांसद दानिश ने पीएम को भेज पत्र में कहा कि पिछले साल देश से लगभग 60 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ था और उसमें सबसे अधिक भागीदारी उत्तर प्रदेश की रही, क्योंकि यहां पर चीनी का उत्पादन महाराष्ट्र से लगभग दो गुना था। चालू वर्ष में भी क़रीब 60 लाख टन चीनी के निर्यात का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के इतने बड़े आर्थिक योगदान के बाद भी विडंबना यह है कि वे स्वयं बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रहे हैं। गन्ना उत्पादन की तेज़ी से बढ़ती लागत के बावजूद लगातार तीन पेराई सीज़न में गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई भी बढ़ोतरी राज्य सरकार ने नहीं की है जबकि बिजली, खाद, पेस्टीसाइड, डीज़ल और मजदूरी इन सब लागतों में भारी बढ़ोतरी होने से गन्ना किसानो की कमाई में भारी कमी आई है।
किसान जिस गन्ने को साल भर की मेहनत और लागत से पैदा करता है और चीनी मिलों को समय से गन्ने की आपूर्ति करता है उस पर उसे समय पर भुगतान नहीं मिलता।
उन्होंने कहा कि यूपी से महाराष्ट्र में पिछले साल चीनी मिलों का चीनी उत्पादन आधा था और चालू सीज़न में भी उत्तर प्रदेश से कम है लेकिन 30 अप्रैल तक वहां की चीनी मिलों ने 92.4 प्रतिशत भुगतान कर दिया है जो उत्तर प्रदेश के 12 मई तक के भुगतान से 1,000 करोड़ रुपये अधिक है।
इस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि चीनी के निर्यात और घरेलू बाज़ार से होने वाली कमाई के बावजूद चीनी मिलें किसानों का भुगतान समय से नहीं कर रही हैं। केंद्र सरकार ने गन्ने से सीधे एथनॉल बनाने, डिस्टलिरी लगाने में ब्याज सब्सिडी देने जैसे फ़ायदे इस उद्योग को इसलिए देने का दावा किया था कि उससे किसानों को समय से भुगतान मिलेगा। चीनी मिलें बिजली उत्पादन से भी कमाई कर रही हैं। निर्यात के लिए पिछले साल और चालू साल में भी सब्सिडी दी गई है। इसकी घोषणा के समय भी कहा गया था कि इससे गन्ना किसानों का भुगतान होगा। लेकिन इसका कोई फ़ायदा किसानों को अभी तक नहीं हुआ है। ऐसा तभी हो सकता है जब आपकी केंद्र सरकार और राज्य में आपकी पार्टी की सरकार चीनी मिलों के ऊपर भुगतान के लिए दबाव नहीं बनाती और किसानों के हितों की परवाह नहीं करती है।
उत्तर प्रदेश के नाम एक रिकॉर्ड और भी है। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में मलकपुर स्थित मोदी समूह की चीनी मिल ऐसी है जिसने सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक चालू सीजन 12 मई 2021 तक के लिए गन्ना किसानों को शून्य भुगतान किया है। मलकपुर चीनी मिंल पर किसानों का 378.76 करोड़ रुपये बक़ाया है। भुगतान में देरी करने वाली ज़्यादातर चीनी मिलें पश्चिम उत्तर प्रदेश में है जो की सबसे महत्वपूर्ण गन्ना उत्पादक क्षेत्र है। यह क्षेत्र हरितक्रांति का वाहक रहा है जिस में अमरोहा, हापुड़, बिजनोर, मुरादाबाद, ग़ाज़ियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर, शामली, बागपत, बुलन्दशहर आदि ज़िले शामिल हैं।
उन्होंने पीएम से कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र अमरोहा में स्थित शुगर मिलों का पेराई सत्र समाप्त हो चुका है, लेकिन अभी भी किसानों का 594.97 करोड़ रुपये से अधिक गन्ना मूल्य भुगतान मिलों पर बकाया है। कोरोना कर्फ्यू में किसानों को भुगतान नहीं मिलने से उन्हें गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उनके संसदीय क्षेत्र अमरोहा-गढ़मुक्तेश्वर की (3+1) चार शुगर मिलों पर 220+374.97 = 594.97 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। सिंभावली समूह की चीनी मिलों की बात करें तो उन्होंने 12 मई 2021 तक केवल 21.24 प्रतिशत भुगतान किया है व 607.49 करोड़ बकाया है जिस में केवल मेरे क्षेत्र की सिम्भावली शुगर मिल पर अभी भी किसानों का 374.97 करोड़ बकाया है।
चीनी मिलें डिस्टीलरी भी चलाती हैं और अल्कोहल व एथनॉल का उत्पादन कर भरपूर कमाई कर रही हैं। ऐसी मिलों की कुल कमाई को ध्यान में रखकर सरकार को उनके ऊपर गन्ना भुगतान में देरी की स्थिति में कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। महामारी के दौर में गन्ना भुगतान में देरी से छोटे किसान सबसे अधिक प्रभावित हैं क्योंकि इनमें बहुत से किसानों का गन्ने का सालाना भुगतान एक लाख रुपये से भी कम है। जब इन किसानों के गन्ने का भुगतान समय से नहीं होगा तो आप समझ सकते हैं उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कैसी होगी।
उन्होंने कहा कि आपने 2017 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों की तमाम जन सभाओं में किसानों से वादा किया था कि 14 दिन के अन्दर गन्ना किसानों को भुगतान किया जायेगा। इस वादे पर न तो आप और न ही आप की पार्टी की राज्य सरकार खरी उतर रही है।
सांसद अली ने पीएम से अनुरोध करते हुए कहा कि राज्य के गन्ना किसानों की स्थिति को देखें और राज्य सरकार को निर्देश दें कि वह चीनी मिलों से समय से भुगतान करायें। राज्य सरकार का चीनी मिलों के साथ नरम रवैया है उस में तब्दीली लाये बिना यह संभव नहीं है। ऐसी लचर व्यवस्था बरकरार रही तो, ये न तो देशहित में है और न ही किसानों के हित में है। भुगतान में देरी से किसानों में बहुत रोष है।