प्रेग्नेंसी की संभावनाओं को बढ़ा रही तकनीक, एडवांस टेक्नोलॉजी ने आईवीएफ की सफलता दर में की वृद्धि

हापुड़ : फर्टिलिटी के इलाज के क्षेत्र में काफी तकनीकी प्रगति हुई है जिसके चलते कृत्रिम प्रजनन तकनीक (एआरटी) का सक्सेस रेट और सुरक्षा में सुधार हुआ है.यथार्थ हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा में गायनेकोलॉजी एंडोस्कोपी एंड आईवीएफ की सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर नीलम बनर्जी ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी साझा की.

इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) आईवीएफ की एक बहुत ही आम प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल 20 साल से ज्यादा वक्त से किया जा रहा है. ये एक माइक्रो-असिस्टेड फर्टिलाइजेशन प्रोसेस है.

आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान हर अंडे के टच में हजारों की संख्या में शुक्राणु आते हैं. ये उम्मीद की जाती है कि शुक्राणु अंडे में शामिल हो जाए. लेकिन कई मामलों में इनक्यूबेशन के बाद भी बहुत कम अंडे ही फर्टिलाइज हो पाते हैं यानी महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं. हालांकि, ओलिगोज़ोस्पर्मिया यानी लो स्पर्ट रेट के मामलों, टेराटोज़ोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की असामान्य आकृति विज्ञान) और स्पर्म ट्रांसपोर्ट डिसऑर्डर के मामलों में आईसीएसआई प्रक्रिया असरदार रही है. इसमें शुक्राणु पर्याप्त संख्या में प्रोड्यूस होते हैं, लेकिन उनमें कम गतिशीलता, गुणवत्ता और एकाग्रता होती है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI):अब तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक, जो अभी भी क्लीनिकल ट्रायल के अधीन हैं, को सबसे अच्छे भ्रूण की पहचान करने में बहुत अधिक सफलता मिली है. इस तकनीक में एआई सिस्टम भारी मात्रा में डेटा की समीक्षा करता है (प्रत्येक भ्रूण की सैकड़ों इमेज पर) और हर एक भ्रूण के हृदय में विकसित होने की संभावना का विश्लेषण करता है. इसके बाद ज्यादा स्कोर वाला भ्रूण ट्रांसफर के लिए चुन लिया जाता है.

रोबोटिक टेक्नोलॉजी एंड नैनोबोट्स: रोबोटिक और नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से आईसीएसआई में ऑटोमेशन की शुरुआत के साथ, बेस्ट शुक्राणु या भ्रूण के चयन के माध्यम से रियल टाइम में अंडाणु प्रवेश का विश्लेषण करने के लिए एक अच्छी तकनीक मिली है. नैनो टेक्नोलॉजी में, गर्भाशय में स्वस्थ भ्रूण को प्रत्यारोपित करने से पहले, सबसे अच्छे शुक्राणु कोशिका का चयन और परिवहन करने के लिए एक नैनोबोट जारी किया जाता है जब तक कि यह अंडे में प्रवेश नहीं करता है. जबकि रोबोट असिस्टेड आईसीएसआई में, सिस्टम सिंगल स्पर्म की विजुअल ट्रैकिंग करता है, शुक्राणु के रोबोट स्थिरीकरण, पिकोमीटर वॉल्यूम के साथ शुक्राणु की एस्पीरेशन, और उच्च स्तर की प्रजनन क्षमता के साथ एक अंडाणु में शुक्राणु का सम्मिलन करता है. इस प्रक्रिया में ह्यूमन की भागीदारी की कम से कम आवश्यकता पड़ती है. इस तरह के कई ट्रायल्स 90% से अधिक सक्सेस रेट और 90.7% जीवित रहने की दर के साथ सफल रहे हैं.

लेजर असिस्टेड हैचिंग: कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि गर्भाशय में भ्रूण प्रत्यारोपण सफल नहीं होता है. ऐसे मामलों में, एक बार सबसे अच्छा भ्रूण चुने जाने के बाद, प्रत्यारोपण से पहले चयनित भ्रूण पर लेजर असिस्टेड हैचिंग नामक एक प्रक्रिया की जाती है. क्योंकि कुछ मामलों में, भ्रूण की बाहरी परत असामान्य रूप से मोटी हो सकती है, लेजर असिस्टेड हैचिंग वैज्ञानिक रूप से बाहरी परत पर एक छोटा सा छेद करता है जिससे भ्रूण के लिए एंडोमेट्रियम में बेहतर प्रत्यारोपण करना आसान हो जाता है.

इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) एक आर्टिफिशियल रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी)है जिसमें अंडाशय से अंडों की पुनर्प्राप्ति, लेबोरेटरी में शुक्राणुओं के साथ फर्टिलाइजेशन और गर्भाशय के अंदर भ्रूण के बाद हस्तांतरण के बाद नियंत्रित डिम्बग्रंथि हाइपरस्टिम्यूलेशन शामिल है. भ्रूण को 3-5 दिनों तक लेबोरेटरी में रखा जाता है. इसके बाद इलाज किया जाता है जिसमें आईसीएसआई (इंट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन), ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, लेजर असिस्टेड हैचिंग, टीईएसई (टेस्टिकुलर शुक्राणु निष्कर्षण) शामिल है.

ग्रेटर नोएडा स्थित यथार्थ हॉस्पिटल के आईवीएफ सेंटर में इसी तरह की उन्नत तकनीक और बेस्ट टीम के साथ बच्चों की समस्या से जूझने वाले कपल्स को किफायती, भरोसेमंद इलाज मुहैया कराया जाता है. यहां मॉडर्न तकनीक से लैस टीम है, जो मरीजों का ध्यान रखती है. अलग-अलग उम्र की महिलाओं के अलग-अलग इशू होते हैं जिन पर यहां विशेष तरीके से ध्यान दिया जाता है.

Exit mobile version