हापुड़।
आज सरस्वती शिशु मंदिर नेहरू नगर में क्षेत्रीय शिशु वाटिका प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला के तीसरे दिन वंदना सत्र के पश्चात् नन्हे-मुन्ने छात्रों को मन्त्रोच्चारण के द्वारा स्वर्ण प्राशन कराया गया।
आयुर्वेद के अनुसार स्वर्ण प्राशन के दिव्य औषधि है इसमें स्वर्ण भस्म सहित कई जीवनदायिनी और मेधा वर्धक औषधियों से निर्मित किया गया है।
कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता के अनुसार स्वर्ण प्राशन हमारे ऋषियों की आरोग्यवर्धिनी परंपरा है। प्राचीन काल में बच्चों का टीकाकरण नहीं होता था किंतु स्वर्ण प्राशन उसी टीकाकरण का पुरातन संस्करण है जो 6 माह के शिशु से 12 वर्ष आयु तक के बालक को हर मास पुष्य नक्षत्र में दिया जाने वाला एक स्वर्ण युक्त एक पथ्य है। इसके नियमित सेवन से छात्रों की आयु, बल, बुद्धि,मेधा तेज वृद्धि, विद्या और विकास पर्याप्त मात्रा में होते हैं। ऐसा बालक हमेशा स्वस्थ रहता है। बीमार नहीं पड़ता है।
क्षेत्रीय शिशु वाटिका संयोजिका सुधा बाना ने बताया कि स्वर्णप्राशन प संस्कार प्राचीन परंपरा है।विद्या भारती द्वारा संचालित शिशु वाटिका के छात्रों का कई वर्षों से सुवर्णप्राशन संस्कार चल रहा है और उसके बहुत ही चमत्कारी प्रभाव देखने को मिले हैं ।ऐसे बालक ,ज्ञान, विद्या बुद्धि और बहुत ही उत्तम रहते हैं।
अन्नप्राशन संस्कार के पश्चात क्षेत्रीय शिशु वाटिका की संयोजिका सुधा बाना ने छात्रों की माताओं को बताया की मातृशक्ति अपने बालक को बहुत महान बना सकती है। माता जीजाबाई की तरह भी उन्हें अपने पुत्र को देशभक्त, राष्ट्रभक्त और अपने धर्म से युक्त संस्कारी बनाना होगा। आवश्यकता है वर्तमान में चल रहे सांस्कृतिक दोहन को रोकने की। बच्चों को माताजी सुसंस्कार दे सकती है और उसकी नियमित देखभाल करके उन्हें पुष्टि प्रदान कर सकती है।
माताओं को बालोपयोगी खेल भी खिलाए गए ,ताकि यह भी अपने बच्चों को संस्कार के रूप में घर पर बहुत कुछ सिखा सके।
क्षेत्रीय संगठन मंत्री रामेश्वर साहू ने सभी प्रशिक्षकों को आशीर्वाद दिया और शुभकामनाएं प्रदान की।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या रेखा शर्मा, विद्यालय के व्यवस्थापक प्रदीप गुप्ता, विक्रम, नम्रता आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
शिशु शिक्षा समिति के प्रदेश निरीक्षक शिवकुमार शर्मा ने सभी प्रशिक्षकों व अतिथियों का आभार प्रदर्शन किया।