कभी हिंदू कभी मुस्लिम कभी ईमान मरता है ,हमारे घर के झगड़ों में यह हिंदुस्तान मरता है -अवनीत समर्थ
हापुड़ (अमित अग्रवाल मुन्ना)।
हिंदी साहित्य परिषद के तत्वावधान में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया,
देश भक्ति की रचनाओं से देश प्रेम की धारा बही।
प्रख्यात दोहाकार प्रेम निर्मल ने पढ़ा, कह निर्मल कविराय
तिरंगा फहरे घर घर
मंहगाई की मार
इधर भी सोचें प्रभुवर,
प्रख्यात ओज के कवि डा. अनिल बाजपेई ने पढ़ा,
बांकुरे सेनानी चोटियों पे चढ़ते गए,इतिहास गढ़ते गए, बढ़ते कदमों को रुकने दिया नहीं,भारत की शान तिरंगा झुकने दिया नहीं।
गीतकार महावीर वर्मा ने पढ़ा,
नमन करता हूं मैं उनको
जो ऐसे काम करते हैं
लुटा कर जान अपनी जो,
वतन के नाम करते हैं।
डा आराधना बाजपेई ने पढ़ा, इठला रहीं हैं आज हवाएं भी जोर से,क्योंकि तिरंगे ने उन्हें इक नया अंदाज दिया है।
शहवार नावेद ने पढ़ा ,देश हुआ आज़ाद मेरा, ये आज़ादी अलबेली है।
वीर जवानों की सेना से ,डरती दुश्मन टोली है।।
गरिमा आर्य ने पढ़ा,
झंडा तिरंगा फहरा रहा घर-घर पे चारों ओर,
मच रहा भारत में फिर से आज़ादी का शोर।
प्रसिद्ध कवि राम आसरे गोयल ने पढ़ा,
अपनी ही सीमा से हमने,
आतंकी बंकर ध्वस्त किये।
दुश्मन के सैनिक आक्रांता,
पल भर मे सब पस्त किये।।
बेखौफ शायर डा. नरेश सागर ने पढ़ा,
भारत माँ को नमन् करें, जय कार करें
इंकलाब का मिलकर हम, उदघोष करें
वन्दे मातरम् संग “सागर “, कह दो सबसे
रंग दो तिरंगे से तुम अपनी, गली – गली
डा पुष्पा गर्ग ने पढ़ा,
वो सीमा पर फर्ज निभाएं
हमें अपना कर्म निभाने दो।
अपने हिस्से का कर्ज चुका कर
इस मिट्टी में मिल जानै दो।
कवि विकास त्यागी ने पढ़ा,सीमा पर जो खड़े हुए तिलक लगाए माटी का
हर सैनिक एक महाराणा योद्धा हल्दी घाटी का।
प्रसिद्ध कवि अवनीत समर्थ ने पढ़ा,कभी हिंदू कभी मुस्लिम कभी ईमान मरता है ।
हमारे घर के झगड़ों में यह हिंदुस्तान मरता है ।।
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