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सरस्वती मेडिकल कॉलेज में दो दिवसीय सीएमई और प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न

  • टीबी पहचान और उपचार में आए बदलावों पर हुई विस्तृत चर्चा
  • कार्यक्रम में जागरूकता और स्क्रीनिंग बढ़ाने पर दिया गया जोर
    हापुड़।
    मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाक्टर सुनील कुमार त्यागी के निर्देशन में एनएच-9 स्थित सरस्वती मेडिकल कॉलेज में दो दिवसीय सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) और प्रशिक्षण कार्यक्रम बुधवार को संपन्न हो गया। कार्यक्रम का आयोजन विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) के मौके पर जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डाक्टर राजेश सिंह के नेतृत्व में हुआ। कार्यक्रम के दूसरे दिन केवल टीबी एंड चेस्ट विभाग की फैकल्टी और पीजी स्टूडेंट मौजूद रहे, जबकि मंगलवार को सभी विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर और पीजी स्टूडेंट की मौजूदगी रही। दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान टीबी के लक्षण, पहचान और उपचार पर विस्तार से चर्चा हुई।
    डीटीओ डाक्टर राजेश सिंह ने सीएमई के टीबी की पहचान और उपचार में आए बदलावों से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि शासन के निर्देश पर 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए जनवरी, 2024 से क्षय रोगी के सभी परिजनों को टीबी प्रीवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) दी जा रही है। पहले टीपीटी क्षय रोगी के परिवार में पांच वर्ष तक के बच्चों को ही दी जाती थी।
    कॉलेज के प्रिंसीपल डा. सौरभ गोयल ने उन्हें जिला क्षय रोग विभाग के निर्देशन में हर तरह से सहयोग करने का आश्वासन दिया।
    कार्यक्रम में कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक डा. जेके गोयल, चेस्ट एंड टीबी के विभागाध्यक्ष डा. शुभेंदु गुप्ता, अ‌सिस्टेंट प्रोफेसर डा. आशीष कौशिक, डा. ललित गर्ग, राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) से कॉलेज में तैनात मेडिकल ऑफिसर डा. उत्कर्ष सचान और टीबीएचवी मोहम्मद नासिर का सहयोग रहा। डा. उत्कर्ष सचान ने चेस्ट एंड टीबी के पीजी स्टूडेंट को फेफड़ों की टीबी और उसके प्रसार के बारे में विस्तार से बताया।

जिला पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी ने बताया कि दो सप्ताह तक खांसी या बुखार, खांसी में खून या बलगम आना, सीने में दर्द रहना, थकान रहना, वजन कम होना और रात में सोते समय पसीना आना टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इनमें से कोई एक भी लक्षण नजर आने पर टीबी की जांच करानी आवश्यक है। इसके अलावा शरीर के किसी हिस्से में गांठ भी टीबी की पहचान हो सकती है। सीएमई के दौरान यह भी बताया गया कि ओपीडी में आए रोगियों में से कम से कम पांच प्रतिशत की टीबी जांच करानी जरूरी है। कोविड की तरह अधिक जांच करके टीबी रोगियों की जल्दी पहचान की जा सकती है।

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