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प्रोफेसर हरेन्द्र सिंह बने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत अध्यक्ष, लोगों ने दी बंधाईया

  • उज्जैन में हुई राष्ट्रीय कार्यशाला में घोषणा
  • राष्ट्रीय कार्यशाला में मेरठ से पहुंचे 15 कार्यकर्ता
    हापुड़/गढ़मुक्तेश्वर। उज्जैन (मध्य प्रदेश)में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की त्रिदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस राष्ट्रीय कार्यशाला में देश भर से 400 से अधिक प्रोफेसर, प्राचार्य, कुलपति, कुलसचिव, शिक्षाविद तथा शोधार्थी एवं न्यास के कार्यकर्ता सम्मिलित हुए। इसमें मेरठ प्रांत से भी 15 प्रांतीय दायित्ववान कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया। यह आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली ,मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग, भोज मुक्त विश्वविद्यालय भोपाल एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर माधव सेवा न्यास उज्जैन में 3 से 5 जून को किया गया। इस कार्यशाला में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर गहन मंथन हुआ। इस अवसर पर शिक्षा में किए जा रहे अभिनव प्रयोगों पर एक प्रदर्शनी का भी लोकार्पण मध्य प्रदेश के विद्यालयी शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने किया। माधव सेवा न्यास उज्जैन में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यशाला का समापन करते हुए राज्यपाल श्री मंगू भाई पटेल ने कहा कि पुराना सामर्थयवान भारत देश की अपनी गरिमा के साथ वापस आ रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अभिनव दृष्टि के साथ बनाई गई है। भविष्य की चुनौतियों के समाधान प्रस्तुत करने की दृढ़ संकल्पना इसमें निहित है। इस नीति से शैक्षिक, संस्कारवान, राष्ट्र भक्त विद्यार्थियों का निर्माण होगा। उन्होंने आगे कहा कि एक समय था जब विदेश में पढ़ना गौरव बन गया था। शिक्षा शक्ति और साधन है। नई शिक्षा नीति विश्व में भारत को विशिष्ट पहचान दिलाएगी।
    समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आज मुझे बहुत खुशी हो रही है। ऐसा लग रहा है कि महाकाल के आंगन में बैठकर 3 दिन तक गोष्ठी में महत्वपूर्ण तपस्या हुई है । कई विचार उत्पन्न हुए होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और नीति को आगे ले जाने के लिए आपने जो परिश्रम किया है, उसके परिणाम आने वाले दिनों में दिखाई देंगे। एक समय था जब हमें शिक्षा बचाव के लिए आंदोलन करना पड़ रहा था। उन्होंने विश्वविद्यालयों के कुलपति और कार्यपरिषद सदस्यों को सलाह देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति और कार्यपरिषद के सदस्य विश्वविद्यालय के विकास को गति देने के लिए पदस्थ किए जाते हैं। उन्हें अपनी गरिमा व मर्यादा का आभास होना चाहिए। उन्हें अपने अहम से टकराव की स्थिति निर्मित नहीं करना चाहिए, अपितु विश्वविद्यालय के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। अच्छे बोल केवल सुनने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने आचरण से व्यक्त करना चाहिए। हम धार्मिक पुस्तकें पढ़ें और हमारा आचरण ठीक नहीं हो ,यह कदापि उचित नहीं है। अगर हमें विश्व गुरु बनना है तो सभी का योगदान जरूरी है।
    न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीयता को आधार बनाया गया है। अब शिक्षा में व्यवहारिक परिवर्तन हो रहे हैं। कुलपति गण एक-दूसरे विश्वविद्यालयों से समन्वय कर काम कर रहे हैं। शिक्षा परिवर्तन की गति से तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने भारतीय भाषा के गौरव को व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया की श्रेष्ठ भाषा भारतीय भाषा मानी गई है। जब तक देश का छात्र आत्मनिर्भर नहीं होगा ,देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता।
    मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि हमें अपने वास्तविक इतिहास को जानना जरूरी है। अभी तक मुगलों के गौरव गान को ही पढ़ाया जाता रहा है।हमारे महापुरुषों के बलिदानों की गाथा हमें नहीं पढ़ाई गई। लेकिन अब वक्त बदल गया है। हम अपने प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने जा रहे हैं। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में दो प्रस्ताव -1 भारतीय भाषाओं में शिक्षा तथा 2. शिक्षा से आत्मनिर्भर भारत (राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में) सर्व सम्मति से पारित किए गए। तीन दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यशाला का विवरण हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक श्री अशोक कडेल ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर मेरठ प्रांत के चार दायित्वों की भी घोषणा की गई। जिसमें प्रो0 संजय कुमार शर्मा को प्रांत संरक्षक, प्रो0 हरेन्द्र सिंह को प्रांत अध्यक्ष, प्रो0 एसएस गौरव तथा श्री योगेंद्र सिंह को सह प्रांत संयोजक तथा मनु गोस्वामी को क्षेत्रीय संयोजिका महिला कार्य का दायित्व दिया गया।
    मितेंद्र कुमार गुप्ता
    (प्रेस सचिव)
    शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, मेरठ प्रांत

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