दशहरे के पर्व पर आयोजित हुआ विराट कवि सम्मेलन

दशहरे के पर्व पर आयोजित हुआ विराट कवि सम्मेलन

हापुड़।

दशहरे के पर्व पर आयोजित विराट कवि सम्मेलन में दूर दूर से आए कवियों ने अपनी कविता,गीत गजलों से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया । आयोजकों ने सभी कवियों का पटका ,पुष्पगुच्छ,एवं प्रतीक चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
मां शारदे की वंदना के पश्चात डा आराधना बाजपेई ने पढ़ा,
“बीस भुजाएं शेष हैं,
शेष आज भी शीश!
ठट्टा मारे हंस रहा,
जीवित है दसशीश!!”

पिलखुवा से पधारे कवि डा सतीश वर्धन ने पढ़ा,”जीना मुश्किल हो गया है आज के परिवेश में।
ज्यादा घृणित और घिनौना घट रहा है देश में।।
बुलबुल जैसी बेटियों की हम स्वयं रक्षा करें।
बाज भी कुछ घूमते हैं आदमी के वेश में।।

मंच का संचालन करते हुए कवि डा अनिल बाजपेई ने पढ़ा,घर घर जिसके कृत्य की
होती जी भर निंदा है!
जन्मों से पुतला फुंक रहा
फिर भी रावण जिंदा है!!
बीस भुजा सारी कटीं,
सिर भी बचे न शेष!
हम लोगों पर आज भी,
हंसता है लंकेश!!
धौलाना से पधारे ओजस्वी कवि राजकुमार सिसोदिया ने पढ़ा,बेटो को पढ़ाया कैसे नौकरी लगाया कैसे,
पेंट काट काट मैंने जोडी पाई पाई है।
विवाह रचाया ऐसे ख़ुशी हुए कैसे कैसे,
बहू को भी बेटी माना सीने से लगायी है।
ज्यो ज्यो दिन बीत रहे बेटे हमसे खीझ रहे,
बातें खोजें रोज कछु हाथ नहीं आयी हैं।
जिन्हें न होंने दिया ह्रदय से दूर कभी उन्ही ने निकाली घर के बाहर चारपाई है।

नोएडा से पधारे हास्य कवि विनोद पांडेय ने पढ़ा,है बड़ी मुश्किल से देखो पांव पर अपने खड़ा
पर सभी तिकड़म लगा कर वो है उड़ने पर अड़ा
चार बीघा थी ज़मीं पर बाप निर्धन हो गया
दो बीएचके फ्लैट लेकर बन रहा बेटा बड़ा
मेरठ से पधारे कवि चंद्र शेखर मयूर ने पढ़ा,घर में बेटी हुई कोई गम तो नहीं।
आंखें मेरी हुई कोई नम तो नहीं।
गर्व से सर उठाकर ये कहता हूं मैं।
बेटियां मेरी बेटों से कम तो नहीं।

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