भीषण गर्मी व जाम के बीच लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा दशहरा पर्व पर गंगा में लगाई डुबकी, लगा जाम, एएसपी ने संभाली व्यवस्था
हापुड़। यूपी का मिनी हरिद्वार कहे जानें वालें गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट सहित अन्य घाटों पर रविवार को
ज्येष्ठ माह में गंगा दशहरा पर्व पर दिल्ली, एनसीआर व अन्य राज्यों के लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाकर पूजा अर्चना की। इस दौरान हाईवे पर लगे लम्बें जाम में श्रृद्धालुओं फंसे रहे। एएसपी राजकुमार अग्रवाल ने सड़कों पर उतरकर कमान संभालते हुए जाम खुलवाया और ट्रेफिक सुचारू किया।
रविवार को दिल्ली एनसीआर समेत पश्चिम उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से ब्रजघाट, पुष्पावटी घाट व अन्य में आए लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था के डुबकी लगाई। इस दौरान गंगा तट पर गंगा मैया के जयघोष लगते रहे।
पुलिस ने सड़कों पर लगे जाम को खुलवाया
शनिवार की रात में श्रद्धालुओं के आवागमन के दौरान रोड पर करीब एक घंटे के लिए कुछ वाहन जाम में फंसे थे, लेकिन मौके पर पहुंचे एसपी समेत पुलिस बल ने जाम खुलवाया। रूट डायवर्जन का सही ढंग से पुलिस द्वारा पालन कराया गया। जिसके कारण नेशनल हाईवे नौ पर जाम की स्थिति नहीं बनी।
गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट का महत्व
गढ़मुक्तेश्वर धाम का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता और महत्व को समझा जा सकता है। यह तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे स्थित है, जो पितरों और पूर्वजों के पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि का एक दूसरा कारण है, कार्तिक मास में पूर्णिमा के मौके पर यहां लगने वाला वार्षिक मेला। इस मेले को उत्तर भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है।
गंगा दशहरा पर होती है विशेष पूजा
गढ़मुक्तेश्वर में गंगा के किनारे बने गंगा मंदिर में गंगा दशहरा के मौके पर विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। बता दें, गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि को देवी गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। यूं तो यहां सालों भर पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है, लेकिन गंगा दशहरा पर्व के दिन यहां भारी संख्या में लोग गंगा स्नान करने और पितृ दोष से मुक्ति के लिए पूजा और अनुष्ठान के लिए आते हैं।
इसलिए कहलाता है गढ़मुक्तेश्वर
गढ़मुक्तेश्वर संभवतः हरिद्वार-ऋषिकेश, गया और प्रयाग जैसे भारत के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक है। शिव पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव के गण शापित होकर पिशाच योनि में चले गए थे, तब उन्हें यहीं पर इस योनि से मुक्ति मिली थी। इसका वास्तविक नाम गणमुक्तेश्वर था, जो आज गढ़मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता है।
पांडवों ने यहीं किया था पिंडदान
कहते हैं, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने युद्ध में मृत अपने सगे-संबंधियों का तर्पण और पिंडदान गढ़मुक्तेश्वर में ही किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां पिंडदान करने के बाद बिहार के गया नामक स्थान पर पिंडदान और श्राद्ध करने की जरुरत नहीं होती है।
गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट का महत्व
गंगा नदी किनारे स्थित इस पौराणिक धाम का सबसे पवित्र घाट ‘ब्रजघाट’ को माना जाता है। मान्यता है कि यह घाट हरिद्वार की हर की पौड़ी, नासिक के रामकुंड घाट और काशी के दशाश्वमेध घाट की तरह पवित्र है।