श्रीमती ब्रह्मा देवी विघालय में समर्थ शिशु श्रीराम कथा का हुआ शुभारंभ: श्रेष्ठ सन्तान ही सबसे महान योगदान है-पं० श्याम जी मनावत

श्रीमती ब्रह्मा देवी विघालय में समर्थ शिशु श्रीराम कथा का हुआ शुभारंभ: श्रेष्ठ सन्तान ही सबसे महान योगदान है-पं० श्याम जी मनावत
हापुड़।
कोई व्यक्ति बड़े-बड़े मकान देकर गए, कुछ व्यक्ति बड़े-बड़े उन्नत सामान देकर गए, कुछ व्यक्ति बड़ी-बड़ी दुकान देकर गए, परन्तु स्मरण महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या का होता है क्योंकि वे इस देश को भगवान देकर गए। मनुष्य अपने पीछे सबसे प्रभावकारी और परिणामकारी कुछ छोड़कर जाता है तो वह उसकी संतान होती है। क्योंकि संतान यदि रावण जैसी हुई तो विश्व को वेदना देती है और संतान राम जैसी हुई तो विश्व उसकी वंदना करता है। संतान कंस जैसी हुई तो त्रास देती है और संतान कृष्ण हुई तो महारास देती है।
ये विचार देश के सुप्रतिष्ठित कथा व्यास पं० श्याम जी मनावत ने शिक्षा भारती हापुड़ द्वारा आयोजित अभिवन कथा अनुष्ठान में व्यक्त किए। श्रीमती ब्रह्मादेवी सरस्वती बालिका विद्या मन्दिर, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, केशवनगर मोदीनगर मार्ग, हापुड़ के सुसज्जित भव्य सभागार में आज इस दिव्य कथा का श्रीगणेश हुआ। कथा के राष्ट्रीय संयोजक श्री हुकुमचन्द जी भुवन्ता ने भूमिका रखते हुए कहा कि कथा के माध्यम से समाज प्रबोधन हमारी पुरानी परम्परा है। कथा के माध्यम से लोक जागरण और लोक शिक्षा का कार्य प्रभावी ढंग से होता है। आने वाली संतान समर्थ हो इसलिए इस कथा का आयोजन किया गया है। विद्या भारती के मार्ग दर्शन में हम यह कार्य कर रहे हैं। कथा के पूर्व शोभा यात्रा व कलश यात्रा निकाली गई।
उल्लेखनीय है कि यह कथा दिनांक 23 से 27 अप्रैल तक पांच दिन दोपहर 3 से 6 बजे तक श्रीमती ब्रह्मादेवी सरस्वती बालिका विद्या मन्दिर, उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, हापुड़ में आयोजित है। सभी समाज-जन सादर आमन्त्रित हैं।
इसी अवसर पर विद्यालय में छात्राओं के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए पांच दिवसीय शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम का भी आरम्भ हुआ। प्रथम दिवसीय सत्र में श्री जेयस भाई त्रिवेदी (प्रबन्धक अखिल भारतीय प्रशिक्षण केन्द्र, गुजरात) ने शिक्षकों के सर्वांगीण विकास हेतु अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किये जिसमें उन्होंने शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए गुरु और शिष्य के बीच आत्मीयता और Eye Contact के होने पर बल दिया। साथ ही मानव जीवन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य का प्रमुख उद्देश्य न केवल स्वयं का, व्यक्तित्व, परिवार, समाज का अपितु राष्ट्र का सर्वांगीण विकास करना है। उन्होंने शिक्षा की शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक व नैतिक पंचतत्वीय प्रणाली के अंतर्गत क्रिया, अनुभव, आनन्द आध अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली पर प्रकाश डाला।