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खाद्य पदार्थों पर लगाई गई जीएसटी के विरोध में व्यापारियों ने की हापुड़ की गुड़ और गल्ला मंडी अनिश्चितकालीन बंद, पीएम को सौंपा ज्ञॉपन

लाखों के राजस्व को हानि

हापुड़(अमित अग्रवाल मुन्ना)।

व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों पर सरकार द्वारा लगाई गई जीएसटी को विरोध किया जा रहा है। जी०एस०टी० काउंसिल की 47 वीं बैठक में सभी प्रकार के अनब्रांडे, प्रीपैक्स, प्रीलेविल अनाज, अरहर दाल, गेहूँ, चना, मुरमुरे, आर्गेनिक गुड, आटा जैसी आवश्यक उपयोग में आने वाली आवश्यक वस्तुओं पर 5 प्रतिशत कर मण्डी समिति में खड़े अनाजों पर फूड लाइसेंस की अनिवार्यता को वापिस लिये जाने एवं वेयर हाउस में रखे जाने वाले कृषि उत्पाद एवं रू0 1000 /- तक होटल के कमरों पर प्रस्तावित 12 प्रतिशत जी.एस.टी. व अस्पतालों पर 5000 से अधिक के बेड पर लगाये गए 5 प्रतिशत अतिरिक्त कर को वापस किए जानें की मांग को लेकर
गुड़-गल्ला मंडी ने बुद्धवार से अनिश्चितकाल के लिए बंद करने कर हड़ताल शुरू कर दी। जिससे सरकार को रोजाना लाखों रूपयें राजस्व की हानि होगी। गुड़-गल्ला मंडी एसोसिएशन व हापुड़ युवा उघोग व्यापार मंडल ने पीएम को सम्बोधित ज्ञॉपन डीएम को सौंपा।

गुड़-गल्ला मंडी एसोसिएशन के महामंत्री अमित गोयल ने कहा कि केंद्र सरकार ने आटा, दाल, चावल आदि अन्य खाद्य पदार्थों में केंद्र सरकार द्वारा पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने की घोषणा की है। जिसका व्यापारियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। जब तक निर्णय वापस नहीं होगा तब तक हड़ताल जारी रहेगी।

व्यापारियों ने चेतावनी दी है कि वापसी ना होनें तक हापुड़ मंडी को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया हैं। दूध दही के अलावा गुड़ पर जीएसटी लगने से व्यापारियों में आक्रोश पनप रहा है।

व्यापारी टुक्की राम गर्ग का कहना है कि डेढ़ प्रतिशत मंडी शुल्क दे रहे थे। अब 5 प्रतिशत जीएसटी लगा दी ग है। जीएसटी लगने नुकसान होगा।

गुड़-गल्ला मंडी एसोसिएशन व हापुड़ युवा उघोग व्यापार मंडल ने पीएम को सम्बोधित ज्ञॉपन में कहा गया कि देश में 01 जुलाई 2017 से एक देश एक टैक्स के नाम पर जी०एस०टी० को लाया गया था। जिसमें अभी तक हुई जी०एस०टी० काउंसिल की 47 बैठकों में 1200 से अधिक संशोधन किए जा चुके है। जिससे सरलता आने के बजाय दिन प्रतिदिन कठिनाइयों बढ़ती जा रही है। जिससे व्यापारियों एवं कर अधिवक्ताओं को अत्यन्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मण्डल निरन्तर मांग करता आया है कि ब्राण्डेड जो खाद्य वस्तुएं हैं उनको भी जीएसटी की शून्य की श्रेणी में लाया जाना चाहिये। व्यापार मण्डल ने कभी राष्ट्रीय स्तर की कम्पनियों के ब्राण्ड की वकालत नहीं की। परन्तु जो छोटे-छोटे व्यापारी, उद्योग अपने गांव-करबे में अपनी वस्तुओं पर ब्राण्ड लगाकर विक्रय करते हैं। उनको जीएसटी की शून्य श्रेणी में लाने के लिये निवेदन करते रहे हैं।

ज्ञॉपन में कहा गया कि पीएम ने कहा था कि आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगाया जायेगा। जीएसटी काउंसिल ने एफएसएसएआई एक्ट का हवाला देकर लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट के अनुसार सभी खाद्य वस्तुएं पैकिंग होकर और प्रोपर लेबल लगकर ही बिकेगी। चाहे वह मण्डी में बिकने वाला गेहूं, धान, दलहन, तिलहन, मसाले एवं कोई भी सामान हो।

तिलहन एवं मसाले पहले ही जीएसटी की 5 प्रतिशत के दायरे में आये हुए हैं तथा चावल मिल का चावल पैक और लेबल लगकर बिकेगा। इसी तरह आटा मिल का आटा दाल मिल की दाल पैक एवं लेबल लगकर बिकेगा और उन पर जीएसटी 18 जुलाई से लगा दिया जायेगा।

मण्डी में किसान अपनी कृषि जिस लेकर आता है और ढेर लगा कर अपनी कृषि जिंस को बेचता है। व्यापारी इसको बैग में भरता है, और इस पर लेबल लगाकर प्रदर्शित करता है कि इसमें कौन सी क्वालिटी की जिस है। तो यह पैक भी हो गया और इस पर लेवल भी लग गया।

जीएसटी काउंसिल की 28-29 जून की बैठक की अनुशंषा के अनुसार 18 जुलाई से जीएसटी के दायरे में आ जायेंगे। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने ब्राण्ड चलाने के लिये हर खाद्य वस्तु को ब्राण्डेड की श्रेणी में लेने व जीएसटी के दायरे में लेने के लिये केन्द्र सरकार और जीएसटी काउंसिल के सदस्यों पर निरंतर दबाव डालते रहे हैं।

80 करोड़ लोगों को भारत सरकार खाद्य वस्तुएं उपलब्ध कराकर उनकी समस्या दूर करती है। परन्तु भारत का 55 करोड़ मध्यमवर्गीय उपभोक्ता जिसमें छोटे-छोटे ट्रेड व उद्योग भी शामिल है। स्वरोजगार के माध्यम से ही अपने सूक्ष्म आय के स्रोतों के अनुसार खाद्य वस्तुओं की व्यवस्था करता है।

खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी लगाना इनके हितों पर कुठाराघात होगा। आज भारत में ऑनलाइन व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। ऑनलाइन कम्पनियां उपभोक्ता को डिस्काउन्ट की लालच देती है। व्यापारियों का व्यापार सिमटता जा रहा है, लाखों व्यापारी बेरोजगार हो चुके हैं।

वेयर हाउस में रखे जाने वाले कृषि उत्पाद, मुंगफली, नारियल, मसालें, काटन आदि वस्तुएं जो अभी तक कर मुक्त के दायरे में थी इनको भी जी. एस. टी. के दायरे में लाया गया है। उन्हे पूर्ण की भांति कर मुक्त की श्रेणी में रखा जायें।

होटल में रू0 1000/- तक के कमरों पर जी.एस.टी. काउंसिल द्वारा 12 प्रतिशत की दर से जी.एस.टी. लेने का निर्णय लिया गया है जिससे कमजोर और मध्यवर्गीय तथा नौकरी पेशा लोगों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा इसे कर मुक्त रखा जाये।

जी.एस.टी. में विक्रेता की गलती का खामियाजा क्रेता व्यापारी को कर का भुगतान करने के बाद भी उठाना पड़ता है और रिवर्स चार्ज द्वारा कर का भुगतान करना पड़ता है। जी.एस.टी. काउंसिल अभी तक जी.एस.टी. विवादों के निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल बैन्चों की स्थापना नही की गयी।

जिस कारण से व्यापारियों को अपने विवाद के निपटारे के लिए मा0 उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है। जिस कारण अनावश्यक व्यय एवं समय लगता है। अतः देश में शीघ्र ही ट्रिब्यूनल बैचों की स्थापना की जायें।

आपसे विनम्र निवेदन है कि गेहूं, आटा दाल, चावल, मुरमुरे, दूध, दही, छांछ एवं गुड जैसी आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगने दें। दिनांक 28-29 जून की 47वी जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में भारत सरकार को आवश्यक वस्तुओं पर पैकेजिंग एवं लेबलिंग के नाम पर लगाये जाने वाले कर (जीएसटी) की अनुशंषा को निरस्त करवाने की मांग की।

ज्ञॉपन देनें वालों में राजीव गर्ग दत्तियाना वालें,सोनू बंसल ,अतुल अग्रवाल दादरी वालें,ललित छावनी वालें आदि मौजूद थे।

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