उत्तर प्रदेश में समान नागरिक संहिता आधुनिक भारत की आवश्यकता – जितेश भारद्वाज
हापुड (सौरभ शर्मा)। हापुड़ जनपद की बार के अधिवक्ता व समाज सेवी जितेश भरद्वाज का कहना है कि
हाल ही में भारतीय विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता के बारे में आम राय मांगी है और यह अच्छी बात भी है इक्कीसवीं सदी के भारत मे एक बरसो से उठी मांग की तरफ सरकार का ध्यान गया है और देश के विधिज्ञाताओ, बुद्धिजीवी, और शुभचिंतको को इसमे खुलकर राय देनी भी चाहिए जिससे इसमे कम से कम पेचीदगियां और विसंगति रहे और सभी जनमानस के लिए यह कानून उपयोगी सिद्ध हो, हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री का यह बयान कि देश अब अलग अलग कानूनों से नही चलेगा “एक देश एक कानून” जैसे शब्द उनके भाषण में आना यह इंगित भी करता है कि मोदी इस ओर धीरे से ही सही कदम बढ़ा चुके हैं और इसके कई कारण भी है।समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष में तर्क संविधान निर्माण के बाद से ही समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग उठती रही है। लेकिन, जितनी बार मांग उठी है उतनी ही बार इसका विरोध भी हुआ है। समान नागरिक संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार दिए गए हैं।अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म,जाति,लिंग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव करने की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार लोगों को दिया गया है।लेकिन, महिलाओं के मामले में इन अधिकारों का लगातार हनन होता रहा है।बात चाहे तीन तलाक की हो, मंदिर में प्रवेश को लेकर हो,शादी-विवाह की हो या महिलाओं की आजादी को लेकर हो, कई मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है।
इससे न केवल लैंगिक समानता को खतरा है बल्कि, सामाजिक समानता भी सवालों के घेरे में है। जाहिर है, ये सारी प्रणालियाँ संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है। लिहाजा, समान नागरिक संहिता के झंडाबरदार इसे संविधान का उल्लंघन बता रहे हैं।
दूसरी तरफ,अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर मुस्लिम समाज समान नागरिक संहिता का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा जाता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। इसलिये, सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा।मुस्लिमों के मुताबिक उनके निजी कानून उनकी धार्मिक आस्था पर आधारित हैं इसलिये समान नागरिक संहिता लागू कर उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए।मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक शरिया कानून 1400 साल पुराना है, क्योंकि यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है।
लिहाजा, यह उनकी आस्था का विषय है। मुस्लिमों की चिंता है कि 6 दशक पहले उन्हें मिली धार्मिक आजादी धीरे-धीरे उनसे छीनने की कोशिश की जा है। यही कारण है कि यह रस्साकशी कई दशकों से चल रही हैं।